गौतम बुद्ध की जीवनी, परिचय,हिंदी में – Biography of Goutam Buddha in Hindi, Article

गौतम बुद्ध भारत के महान दार्शनिक ,अपने विचारों से दुनिया को रास्ता दिखने वाले ,धर्मगुरु , वैज्ञानिक ,एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक के नाम से विख्यात हुए ।इनकी शादी राजकुमारी यशोधरा से हुई और उनका एक पुत्र हुआ उसका नाम रखा राहुल ।लेकिन समाज के सुधार के खोज में उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चे को त्याग दिया था ।
समाज के दुखों को देखते उन्होंने दुखों से मुक्ति की खोज व सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में अपने महल से रात के समय जंगल की ओर चल दिए ।कठोर तपस्या के बाद बहुत सालों के बाद बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई ।उसके पश्चात वे सिध्दार्थ गौतम से गौतम बुद्ध कहलाए।
करीब 190 करोड़ के पार पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयाई है। 25 प्रतिशत लोगों की संख्या विश्व भर में बौद्ध धर्म के मानने वालों की हैं।किए गए एक सर्वे के अनुसार इसमें – भूटान ,नेपाल ,चीन,जापान, थाईलैंड, मंगोलिया, वियतनाम, कंबोडिया , साउथ कोरिया , मलेशिया , इंडोनेशिया, भारत ,हांगकांग ,अमेरिका , श्रीलंका आदि देश हैं।जिसमें श्रीलंका ,भूटान,भारत में बौद्ध धर्म के अनुयाई ज्यादा संख्या में हैं।
जीवन परिचय
गुरु विश्वामित्र से सिद्दार्थ ने अपनी शिक्षा ग्रहण की ।उनकी उपनिषद व वेद के साथ साथ युद्ध विद्या भी ग्रहण की । सिद्दार्थ गौतम को बचपन से ही धनुष वाण ,रथ हांकना, और घुड़सवारी में कोई दूसरा मुकाबला नहीं कर सकता था ।इस तरीके से उन्होंने इन कलाओं को क्षत्रिय की भातिं ग्रहण किया ।
सिद्धार्थ के जन्म के ठीक सात दिन बाद उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था बाद में उनकी देख रेख और पालन पोषण उनकी सौतेली मां (मौसी) महाप्रजावती ने किया ।
सिद्दार्थ के जन्मदिन पर आमंत्रित उस समय के विख्यात साधु दृष्ठा आसित ने भविष्यवाणी की थी कि ये बालक एक दिन महान् पथ प्रदर्शक बनेगा ।
राजकुमारी यशोधरा के साथ मात्र सोलह साल की उम्र में सिद्दार्थ की शादी हो गई । और शादी के बाद उनको एक संतान हुई जिसका नाम राहुल रखा था लेकिन उनकी आस्था मोह माया के चक्रों से दूर होकर जल्दी ही उन्हें घर परिवार से दूर कर गई जब उन्होंने समाज के दुख और लोगों की बीमारी और दुखों को देखा तो उन्होंने परिवार से त्याग कर जंगल की तरफ कदम रखे।
सिद्दार्थ के लिए उनके पिता राजा शुद्धोधन ने भोग- विलास और मनोरंजन के लिए भरपूर मात्रा में इंतजाम कर रखा था ।तीन ऋतु के हिसाब से उनके पिता ने तीन महल बनवा रखे थे ।जिसमें मनोरंजन से लेकर नाच गान और भोग विलास की सभी व्यवस्था कर रखी थी ।लेकिन बहुत से कारण हैं जो सिद्दार्थ को ये चीजें अपनी ओर नहीं खींच सकी ।और सिद्दार्थ ने राजकुमारी यशोधरा और अपना बालक राहुल को छोड़कर वन की ओर चले जाने का मन बनाया और चल दिए ।
जंगल में जाकर सिद्दार्थ ने कठिन से कठिन तपस्या करना शुरू की ।शुरू शुरू में सिद्दार्थ तिल और चावल खाकर तपस्या करने में खो जाते थे बाद में बिना अन जल के भी तपस्या करते रहे । कठिन तपस्या और ताप करके उन्होंने खुद को काफी कठिनायों में डाला और उसकी वजह से उनका शरीर भी कमजोर हो गया था । तप करते करते 6 साल का समय हो गया था । एक समय की बात है।सिद्दार्थ वन में तपस्या कर रहे थे और वहां से कुछ औरतें गुजर रही थी ।
महिलाएं कुछ गीत गुनगुना रही थी और उनका एक गीत सिद्दार्थ के कानों में सुनाई दिया था ” वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो” और तारों को इतना भी मत छोड़ो कि टूट जाएं। ये गाना उन्हें इतना बता गया कि नियमित रूप से खाना पीना ही हमें स्वस्थ रख सकता है।और तभी हमारी नियमित आहार विहार से योग सिद्द हो सकता है।अत: किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम रास्ता ही सही होता है ।और ये कठोर तपस्या से मुमकिन हैं।
गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति
एक दिन सिद्दार्थ वटवृक्ष के नीचे ध्यान पूर्वक वैसाखी पूर्णिमा के समय में बैठे थे । सुजाता नाम की महिला के एक पुत्र हुआ था ।वटवृक्ष से उस महिला ने एक पुत्र के लिए मन्नत मांगी थीं । उसकी मन्नत पूरी हो चुकी थी । इस खुशी में मन्नत को पूरा करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर बनाकर उस वटवृक्ष के पास बैठे सिद्दार्थ को साक्षात महात्मा समझकर भेंट की थी कि जिस तरह मेरी मन्नत पूरी हुई हैं।उसी तरह आपकी भी मनोकामना सफल हो जाए । कहा जाता है सिद्दार्थ की साधना उसी रात को ध्यान लगाने से सफल हुई थी ।उन्हें सच्चा बोध हुआ था तभी से वे बुद्ध कहलाए ।और जिस वटवृक्ष के नीचे। वे साधना में बैठे थे बोधिवृक्ष कहलाया और “गया” का सीमावर्ती जगह बोधगया कहलाया ।
भगवान गौतम बुद्ध का धर्म चक्र और परिवर्तन
उस समय की सरल लोकभाषा पली में गौतम बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार किया और धर्म की लोकप्रियता बहुत तेजी से लोगों में बढ़ने लगी। बोधिवृक्ष के नीचे चार सप्ताह रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करने के पश्चात गौतम बुद्ध अपने धर्म का उपदेश करनें लोगों के बीच निकल गए । बुद्ध ने अपने पांच शिष्य को अपना अनुयाई बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचारक के रूप में अलग अलग जगह भेज दिया ।।
80 वर्ष की। उम्र में गौतम बुद्ध ने पाली सिध्दांत के अनुसार एक घोषणा की थी जो आखिरी भोजन उन्होंने कुंडा नामक एक लाहौर से एक महिला के द्वारा भेंट किया गया था उसे खाया उसके बाद वे गंभीर रूप से बीमार हो गए बुद्ध ने अपने शिष्य को एक आदेश दिया कि वो कुंडा को बोले कि उसके द्वारा कोई गलती नहीं हुए है उनके द्वारा दिया गया भोजन महान और अतुलनीय हैं।
गौतम बुद्ध के उपदेश
लोगों को गौतम बुद्ध ने मध्यम का रास्ता अपनाने का उपदेश दिया ।उन्होंने दुख के कारण और निवारण के लिए अहिंसा पर बहुत जोर दिया ।उन्होंने कहा,जीवों पर दया। करो और हवन व पशुबली को निंदनीय बताया । महात्मा बुद्ध के कुछ उपदेश के सार इस तरह हैं।
(1) मध्य मार्ग का अनुसरण
(2)चार आर्य सत्य
(3) अष्टांग मार्ग
(4)ध्यान और योग
(5) बुद्ध में सनातन धर्म का प्रचार करते हुए “अग्निहोत्र और गायत्री मंत्री ” का भी उपदेश दिया ।
सफल जीवन के लिए प्रमुख रूप
बौद्ध धर्म में विशेष रूप से गौतम बुद्ध एक विशेष व्यक्ति थे ।उनका धर्म अपनी शिक्षाओं व धर्म में अपनी नींव रखता है। बौद्ध धर्म का आठ गुना पाठ प्रस्ताव रखा गया है।संसार के महान धर्मों में से बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने देश विदेश में अपनी अमिट छाप छोड़ी और बौद्ध धर्म को लोगों के बीच पहुंचाया।
उनके कुछ जीवन सफल मंत्र



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